Divine Words

...soulful melody!

Tuesday, 5 April 2016

जीवन का सार

☀  जीवन का सार  ☀


♦  एक नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी । एक कौए ने लाश देखी तो प्रसन्न हो उठा । तुरन्त उस पर आ बैठा । पेट भरकर मांस खाया । नदी का जल पीया । उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली ।

♦  वह सोचने लगा - "आह ! यह तो अत्यन्त सुन्दर यान है । यहाँ भोजन और जल की भी कमी नहीं है । फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरुं ?"

♦  कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कईं दिनों तक रमता रहा । भूख लगने पर वह लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता । अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहारी दृश्य, इन्हें देख-देखकर वह विभोर होता रहा ।

♦  आख़िरकार नदी एक दिन महासागर में जा मिली । वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ । सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था । किन्तु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई । चार दिन की मौज-मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहाँ उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय । सब ओर सीमाहीन अनन्त खारी जल-राशि तरंगायित हो रही थी ।

♦  कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब फैलाता रहा । किन्तु महासागर का ओर-छोर उसे कहीं नजर नहीं आया । आखिरकार थक हारकर, दु:ख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुम्बी लहरों में गिर गया । एक विशाल मगरमच्छ उसे निगल गया ।

♦  शारीरिक सुख में लिप्त मनुष्यों की गति भी उसी कौए की तरह ही होती है, जो आहार और आश्रय को ही परम गति मानते हैं और अन्त में अनन्त संसार रुपी सागर में समा जाते हैं
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

श्री हनुमान प्रसंग

राम


एक दिन श्री राम जी ने हनुमान जी से कहा कि
 हनुमान !

 मैंने तुम्हें कोई पद नहीं दिया। मैं चाहता हूँ कि तुम्हें कोई अच्छा सा पद दे दूँ ।
क्योंकि सुग्रीव को तुम्हारे कारण किष्किन्धा का पद मिला, विभीषण को भी तुम्हारे कारण लंका का पद मिला और मुझे भी तो तुम्हारी सहायता के कारण ही अयोध्या का पद मिला ।परंतु तुम्हें कोई पद नहीं मिला ।

हनुमानजी ने कहा --- प्रभु  ! सबसे ज्यादा लाभ में तो मैं हूँ।

भगवान राम ने पूछा --कैसे।

हनुमान जी ने कहा -
सुग्रीव को किष्किन्धा का एक पद मिला, 
विभीषण को लंका का एक पद मिला और 
आप को भी अयोध्या एक ही पद मिला ।

हनुमानजी ने भगवान के चरणों में सिर रख कर कहा कि 
प्रभु ! जिसे आपके ये दो दो पद मिले हों, वह एक पद क्यों लेना चाहेगा ।

सब कै ममता  ताग बटोरी।
मम पद मनहि बाँधि वर डोरी।।
जय जय राम