राम
एक दिन श्री राम जी ने हनुमान जी से कहा कि
हनुमान !
मैंने तुम्हें कोई पद नहीं दिया। मैं चाहता हूँ कि तुम्हें कोई अच्छा सा पद दे दूँ ।
क्योंकि सुग्रीव को तुम्हारे कारण किष्किन्धा का पद मिला, विभीषण को भी तुम्हारे कारण लंका का पद मिला और मुझे भी तो तुम्हारी सहायता के कारण ही अयोध्या का पद मिला ।परंतु तुम्हें कोई पद नहीं मिला ।
हनुमानजी ने कहा --- प्रभु ! सबसे ज्यादा लाभ में तो मैं हूँ।
भगवान राम ने पूछा --कैसे।
हनुमान जी ने कहा -
सुग्रीव को किष्किन्धा का एक पद मिला,
विभीषण को लंका का एक पद मिला और
आप को भी अयोध्या एक ही पद मिला ।
हनुमानजी ने भगवान के चरणों में सिर रख कर कहा कि
प्रभु ! जिसे आपके ये दो दो पद मिले हों, वह एक पद क्यों लेना चाहेगा ।
सब कै ममता ताग बटोरी।
मम पद मनहि बाँधि वर डोरी।।
जय जय राम
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