कबीर जी कि रचना
पुष्कर लेले जी का गायन
इस रचना में ध्यान की अवस्था का वर्णन है।अनाहद शब्द सुनने पर मन की स्थिती बताई गई है।
धुन सुन के मनवा मगन हुवा जी
(मित्र, पारब्रह्म के नाद सुन कर मन मस्ती में खो गया)
लागी समाधी गुरू चरणा जी
अंत सखा दुःख दूर हुवा जी
सार शब्द एक डोरी लागी
ते चढ़ हंसा पार हुवा जी
शून्य शिखर पर झालर झलके
बरसत अमृत प्रेम चुवा जी
कहे कबीरा सुनो भाई साधो
चाख चाख अलमस्त हुवा जी
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