गोरखनाथजी का आत्मिक काव्य
गायन श्री पुष्कर लेले
गुरू जी
मैं तो एक निरंजन ध्याऊं जी
दूजे के संग नहीं जाऊं जी
दुःख न जानूं जी मैं दर्द न जानू जी मैं,
न कोई वैद बुलाऊं जी
सद्गुरू वैद मिले अविनाशी, वा को ही नाड़ी बताऊं जी
दूजे के संग नहीं जाऊं जी
गंगा न जाऊं जी मैं , जमना न जाऊं जी मैं
न कोई तीरथ जाऊं जी
अढ़सठ तीरथ हैं घट भीतर
ताही में मल मल नहाऊं जी
दूजे के संग नहीं जाऊं जी
कहे गोरख जी हूं सुनो हो मछन्दर मैं
जोत में जोत मिलाऊं जी
सत्गुरू के मैं शरण पड़े
काम का मैल मिटाऊं जी
दूजे के संग नहीं जाऊं जी
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