Saturday 13 February 2016

धुन सुन के मनवा मगन हुवा जी

कबीर जी कि रचना
पुष्कर लेले जी का गायन

इस रचना में ध्यान  की अवस्था का वर्णन है।अनाहद शब्द सुनने पर मन की स्थिती बताई गई है।



धुन सुन के मनवा मगन हुवा जी
(मित्र, पारब्रह्म के नाद सुन कर मन मस्ती में खो गया)
लागी समाधी गुरू चरणा जी
अंत सखा दुःख दूर हुवा जी

सार  शब्द  एक  डोरी लागी
ते  चढ़  हंसा पार  हुवा  जी

शून्य शिखर पर झालर झलके
बरसत अमृत प्रेम चुवा जी

कहे कबीरा सुनो भाई साधो
चाख चाख अलमस्त हुवा जी

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